अतीत के स्वर्णिम तथ्य
गोदावरी देवी रामचंद्र प्रसाद सरस्वती विद्या मंदिर पुरानी बाजार नरकटियागंज की स्थापना का श्रेय भूतपूर्व संरक्षक माननीय बीए .विश्वनाथ जी के एकाग्र चिंतन और विचार मंथन का परिणाम है।
जिनके मानस पटल पर कई वर्षों से बरवत (बेतिया) की भांति नरकटियागंज में भी विद्या भारती का विद्यालय सरस्वती शिशु/ विद्या मंदिर स्थापित हो।
इस प्रकार का भाव उनके स्मृतियों में आ रहा था।
फलस्वरूप उन्होंने उस कालखंड में बरवत विद्या मंदिर के प्रधानाचार्य श्री राकेश उपाध्याय एवं उस समय के सचिव श्री मधुसूदन त्रिपाठी से विचार-विमर्श कर नरकटियागंज में भी विद्या भारती के विद्यालय का बीजारोपण कराने का निवेदन किया।
जिसके लिए उन्होंने उस समय के प्रदेश सचिव स्वर्गीय अमरनाथ प्रसाद जी से मिले।
साथ ही उन्होंने प्रदेश सचिव के समक्ष यह विचार रखा कि मैं नरकटियागंज में शिशु मंदिर की स्थापना के लिए अपने जमीन पर भवन निर्मित कर नि:शुल्क दूंगा।
जहां विद्यालय तब तक चलता रहेगा जब तक विद्यालय को
इस प्रकार माननीय संरक्षक श्री विश्वनाथ जी के भगीरथ प्रयास से नरकटियागंज के धरा- धाम पर सरस्वती शिशु/ विद्या मंदिर रूपी मंदाकिनी अवतरित हुई।
अर्थात बीए. विश्वनाथ जी के अथक प्रयास से 10 अप्रैल 2005 को नरकटियागंज में सरस्वती विद्या मंदिर की स्थापना समारोह की खुशियां मनाई गई।
जिस स्थापना समारोह में उस कालखंड के प्रदेश सचिव स्वर्गीय अमरनाथ प्रसाद
विभाग निरीक्षक अजय तिवारी, अरुण ओझा, बरवत के प्रधानाचार्य श्री राकेश उपाध्याय, सचिव श्री मधुसूदन त्रिपाठी एवं रक्सौल विद्या मंदिर के प्रधानाचार्य उपस्थित थे।
रक्सौल एवं बरवत विद्या मंदिर के भैया बहनों द्वारा इस प्रकार के मनोहारी कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए जो, हजारों की संख्या में उपस्थित दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। साथ ही प्रदेश सचिव अमरनाथ प्रसाद जी का प्रेरणादाई उद्बोधन नरकटियागंज के निवासियों के हृदय में शिशु /विद्या मंदिर के प्रति गहरा लगाव पैदा कर दिया ।
इस अवसर पर आयोजित सामूहिक कार्यक्रम सबके हृदय में शिशु मंदिर के प्रति आत्मीय भाव एवं लगाव पैदा कर दिया।
उस स्थापना काल में विद्यालय को सुव्यवस्थित ढंग से संचालित करने के लिए प्रभारी प्रधानाचार्य के रूप में श्री अभय कुमार चौबे जी को नियुक्त किया गया।
जो उस समय बरवत विद्या मंदिर के कार्यालय में संगणक का कार्य देखते थे।
उन्होंने बहुत कम समय में ही पूरे नरकटियागंज में शिशु /विद्या मंदिर की ख्याति फैला दी।
उस युवा कार्यकर्ता के उत्साहवर्धन के लिए माननीय संरक्षक बीए. विश्वनाथ जी का स्नेह प्रेम मिला।
साथ ही उन्हीं के नेतृत्व में एक स्थानीय
प्रबंधकारिणी समिति का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष श्री छोटेलाल जायसवाल, सचिव श्री जितेंद्र जायसवाल, एवं कोषाध्यक्ष श्री पवन शर्मा जी हुए।
साथ ही समिति के कुछ अन्य सदस्यों में
वेदांती शर्मा ,
संजय जायसवाल मोहन सिंह,
बृज किशोर सिंह आदि प्रमुख थे।
जिन लोगों का सहयोग समय- समय पर विद्यालय विकास हेतु मिलता रहा।
उस समय के कोषाध्यक्ष श्री पवन शर्मा संघ के द्वितीय वर्ष प्रशिक्षित स्वयंसेवक थे।
साथ ही घोष में आनक एवं शंख के अच्छे जानकार थे। जिनका मार्गदर्शन समय-समय पर भैया बहनों को मिलता रहा परिणाम स्वरूप विद्यालय में भैया बहनों द्वारा घोष का एक अच्छा दल तैयार हो गया।
अगस्त 2005 में इस विद्यालय में राम बहादुर सिंह जैसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति को प्रथम प्रधानाचार्य के रूप में प्राप्त किया। जिनके नेतृत्व में यह विद्यालय चौमुखी विकास के पथ पर अग्रसर हुआ ।
राम बहादुर सिंह वैसे कुशल प्रधानाचार्य का नाम है जो विद्या भारती योजना में अपने वादन, गायन, खेल,अनुशासन एवं व्यवहार कुशलता के कारण सुप्रसिद्ध है। वे बेगूसराय जिले के रहने वाले थे।
परंतु, अपने व्यवहार कुशलता के कारण जहां कार्य किए वहीं के होकर रह गए। उनके तीन साल के कार्यकाल में विद्यालय का उत्तरोत्तर विकास हुआ।
उसी कालखंड में उन्होंने इस विद्यालय के वर्तमान सचिव श्री सुरेंद्र जायसवाल और उनके छोटे भाई श्री राजू जायसवाल जी से बातें कर उनके माता गोदावरी देवी एवं पिता रामचंद्र प्रसाद जी के नाम पर विद्यालय निर्माण की बात बताई गई।
जिससे उत्साहित होकर माता गोदावरी देवी जी ने विद्यालय को 4 कट्ठा 10 धूर जमीन दान दिया।
जिस पर आज विद्यालय अवस्थित है। इस जमीन की रजिस्ट्री भी माननीय प्रधानाचार्य श्री
रामबहादुर सिंह जी के नेतृत्व में ही हुआ। उन्होंने अपने कालखंड में ही अपने भैया/बहनों के अंदर उत्तरोत्तर विकास की बीज डाल दिए थे ।
उन्होंने इस छोटे से विद्यालय में खेल, गीत, संगीत एवं घोष की एक अच्छी टीम खड़ी कर दी जो आगे चलकर ख्याति प्राप्त किया। जुलाई 2008 में माननीय प्रधानाचार्य राम बहादुर सिंह जी का स्थानांतरण महाराजगंज शिशु मंदिर में हुआ ।
और, अपने इस विद्यालय का नेतृत्व माननीय प्रधानाचार्य श्री कामेश्वर ठाकुर जी के हाथ में आया।
उन्होंने भी अपने एक वर्ष के कार्यकाल में विद्यालय विकास हेतु पूर्णरूपेण चिंतन किया।
उन्हीं के कार्यकाल में अपने नवीन भूमि पर विद्या मंदिर की नींव रखी गई।
उन्होंने सीबीएसई के मानक आधार पर कमरों की नीव का निर्धारण करवाया।
साथ ही उन्होंने सबके मानस पटल पर विद्या मंदिर की आधारशिला कायम की।
इस प्रकार नवीन भूमि पर विद्या मंदिर के आधारशिला का श्रेय माननीय प्रधानाचार्य श्री कामेश्वर ठाकुर जी को ही जाता है जो एक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे।
वे प्रत्येक माह की एकादशी व्रत अवश्य करते थे।
अप्रैल 2009 में माननीय प्रधानाचार्य कामेश्वर ठाकुर जी की स्थानांतरण के बाद विद्यालय का नेतृत्व एक ऐसे युवा प्रधानाचार्य को मिला जिसने विद्यालय का कायापलट करते हुए विद्यालय की दिशा एवं दशा बदल दी ।
उन्होंने अनेक चुनौतियों को स्वीकार करते हुए विद्यालय को नई ऊर्जा एवं गति देने का कार्य किया इस युवा प्रधानाचार्य का नाम श्री प्रदीप कुशवाहा है।
जो वर्तमान में दक्षिण बिहार के प्रदेश सचिव के पद को सुशोभित कर रहे हैं।
उन्होंने आते ही प्रारंभ में कहा था कि मैं एक नीम की निंबोरी हूं जो हजम कर लेने के बाद उपयोगी सिद्ध होउंगा।
आप सभी मेरा साथ दें मैं विद्यालय विकास का हर संभव प्रयास करूंगा ।
उन्होंने अपनी चार साल के कार्यकाल में सचमुच विद्यालय को विकास के स्वर्णिम के शिखर पर पहुंचा दिया।
विषम परिस्थितियों को अनुकूल बनाया विद्यालय का अपना वाहन खरीदा और अनुदानित स्थाई भूमि पर भवन निर्माण का कार्य प्रारंभ किया ।
साथ ही शिक्षा एवं अनुशासन को सफल बनाया उनके शिक्षा एवं अनुशासन प्रभाव से एक वर्ष में भैया बहनों की संख्या दोगुनी हो गई।
साथ ही विद्यालय समाज का मुखौटा बन गया ।
इनके कार्यकाल में शारीरिक घोष एवं योग शिक्षा पर विशेष बल दिया गया।
जनवरी 2013 में इस विद्यालय के अनुभवी व्यवहार कुशल एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति श्री
रवीन्द्र पांडेय जी प्रधानाचार्य जी के रूप में आए।
जिनके व्यवहार कुशलता के आधार पर विद्यालय अनवरत विकास के पथ पर अग्रसर होता रहा। उन्होंने पूर्व प्रधानाचार्य प्रदीप कुशवाहा जी के अधूरे कार्यों को पूरा किया।
चार साल के कार्यकाल में विद्यालय का उत्तरोत्तर विकास हुआ।
इनके कार्यकाल में शिक्षा के साथ-साथ संगीत एवं कला का पूर्ण विकास हुआ।
जुलाई 2016 से इस विद्यालय को एक ऐसे प्रधानाचार्य का नेतृत्व मिला जिन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा के आधार पर अनुशासन एवं व्यवस्था को दुरुस्त करने का कार्य किया। प्रधानाचार्य श्री
नागेन्द्र कुमार तिवारी जी ने विद्यालय को शिक्षा के क्षेत्र में नई दिशा देने का कार्य किया ।
इन्होंने विद्यालय में शिक्षा एवं अनुशासन का एक ऐसा माहौल खड़ा किया जो विद्यालय को उच्च शिखर पर पहुंचाया। विद्यालय को समाज में प्रस्तुत एवं प्रदर्शित करने का कार्य भी इनके द्वारा किया गया। उन्होंने विभिन्न
कार्यक्रमों के माध्यम से तथा संपर्क का दायरा बढ़ाकर विद्यालय को समाज में स्थापित किया।
परिणाम स्वरूप नरकटियागंज में सरस्वती विद्या मंदिर का अपना अलग व्यापक स्वरूप उभरकर सामने आया। श्री नागेन्द्र तिवारी जी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य विद्यालय को सीबीएसई से मान्यता प्राप्त कराना है।
मान्यता प्राप्ति के बाद विद्यालय की ख्याति पूरे नगर में फैल गई। जिसके कारण नगर के विभिन्न विभागों के पदाधिकारी अपने बच्चों का नामांकन इस विद्यालय में करा कर अपने आप को गौरव का अनुभव कर रहे हैं। पुस्तकालय ,
प्रयोगशाला ,ग्रीन बोर्ड एवं संगणक की संख्या बढ़ाकर श्री नागेंद्र तिवारी जी ने शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने का कार्य किया ।
साथ ही कोरोना जैसे वैश्विक महामारी काल में भी आचार्यों को धैर्य एवं साहस के साथ कार्य करने की प्रेरणा दी।
मई 2022 में श्री नागेंद्र तिवारी जी के स्थानांतरण के बाद अपने इस विद्यालय को एक ऐसे अनुभवी, कर्तव्यनिष्ठ ,ईमानदार एवं व्यवहार कुशल प्रधानाचार्य का नेतृत्व प्राप्त हुआ है जो विद्यालय को कोरोना महामारी के आर्थिक संकट से निवृत कर विकास की पटरी पर लाने का अनवरत प्रयास करने में जुटे हुए हैं।
अपने इस अनुभवी प्रधानाचार्य का नाम श्री वाणीकांत झा हैं जिन्होंने शैक्षिक गतिविधियों को विकसित कर तथा परीक्षा परिणाम का निरंतर मूल्यांकन करते हुए भैया बहनों का उत्तरोत्तर विकास करवाया।
जिसके कारण इस वर्ष का सीबीएसई की बोर्ड परीक्षा परिणाम सर्वाधिक उत्कृष्ट रहा। इन्होंने वाटिका खंड के विकास पर विशेष बल दिया है क्योंकि, विद्या भारती का मूल जड़ वाटिका खंड है।
इनके द्वारा वाटिका खंड के भैया बहनों के लिए स्मार्ट टीवी तथा कक्षा कक्ष में कारपेट तथा लिखने के लिए लकड़ी की तख्ती का व्यवस्था करवाया गया। साथ ही विभिन्न प्रकार की चार्ट एवं महापुरुषों के जीवन वृत्त के तस्वीर लगाए गए।
इन्होंने सीबीएसई के मानक अनुसार कंप्यूटर लैब को सुदृढ़ किया।
बीस नए उत्कृष्ट कंप्यूटर सेट खरीद कर भैया बहनों के कंप्यूटर शिक्षा की समस्या को दूर किया ।
साथ ही विद्यालय के भूमि क्रय कर विद्यालय का मार्ग प्रशस्त करते हुए विद्यालय को मुख्य मार्ग से जोड़ा। सीबीएसई के मानक अनुरूप विद्यालय का एक हॉल निर्मित करवाया ।
जो विद्यालय की अनिवार्य आवश्यकता थी।
पेपर स्टैंड तथा कार्यालय का नवीनीकरण आपकी सोच का प्रतिफल है। आपने विद्यालय के सभी विभागों का सूक्ष्म मूल्यांकन कर उसकी त्रुटियों को दूर करते हुए उन्हें नई दिशा प्रदान करने का कार्य किया है।
साथ ही विद्यालय की अर्थव्यवस्था का निरीक्षण कर उसकी वास्तविक
स्थिति को दर्शाते हुए अर्थव्यवस्था को ठीक करने का कार्य आपके द्वारा किया गया है।
जो सराहनीय है आपकी सकारात्मक सोच विद्यालय को एक नई दिशा प्रदान कर रहा है ।
साथ ही आपकी
प्रेरणादाई उद्बोधन ने भैया /बहनों
आचार्य बंधु /भगिनी एवं कर्मचारियों को कार्य के प्रति हमेशा सजग रहने की प्रेरणा देता है।
आप के नेतृत्व में सभी आचार्य बंधु /भगिनी एवं भैया/ बहन उत्तरोत्तर विकास के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं।
यह हम सभी का सौभाग्य है आपकी आगामी सोच विद्यालय को प्लस टू (+2)की मान्यता एवं उत्कृष्ट बोर्ड परीक्षा परिणाम है।